ISRO ने 2 सितंबर को अपना महत्वाकांक्षी सौर मिशन Aditya L1 Mission को सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया। यह भारत का पहला सौर मिशन है।
जैसा कि आपको पता होगा कि 23 अगस्त को ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने चाँद पर एक लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग कराई और उसके बाद यह आदित्य L1 मिशन की सफलतापूर्वक लॉन्चिंग हुई है। इस तरह इसरो ने लगातार दो महत्वाकांक्षी मिशनों में सफलता हासिल की है।
Aditya L1 Mission को इसरो ने अपने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से 2 सितंबर 2023 (दिन शनिवार) को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर दिया। अब यह अंतरिक्ष यान चार महीने की यात्रा के बाद सूर्य के हैलो ऑर्बिट (Halo Orbit) में पहुँच जाएगा और वहाँ स्थित L1 बिन्दु पर सफलतापूर्वक स्थापित हो जाएगा।
इस लेख में हमनें आदित्य L1 मिशन के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी है जो परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। इसलिए इस लेख को पूरा पढ़ें। अंत में हमनें Aditya L1 Mission से संबंधित कुछ FAQs और कुछ MCQs भी दिए हैं जो आगामी परीक्षाओं में पूछे जा सकते हैं।
Aditya L1 Mission: महत्वपूर्ण बिन्दु
मिशन का नाम | आदित्य L1 मिशन |
कब लॉन्च किया गया | 2 सितंबर 2023 को सुबह 11:50 बजे |
कहाँ से लॉन्च किया गया | सतीश धवन स्पेस सेंटर |
सतीश धवन स्पेस सेंटर कहाँ स्थित है | श्रीहरीकोटा, तिरुपति जिला (आंध्र प्रदेश) |
लॉन्च किसने किया | ISRO ने |
ISRO का फुल फॉर्म | Indian Space Research Organisation |
ISRO के वर्तमान अध्यक्ष | श्री एस. सोमनाथ |
Aditya L1 को ले जाने वाले रॉकेट का नाम | PSLV-XL C57 |
Aditya L1 Mission की लागत | लगभग 400 करोड़ रुपये |
सौर मिशन भेजने वाला इसरो कौन सी स्पेस एजेंसी होगी | तीसरी (अन्य दो स्पेस एजेंसी – नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी) |
Aditya L1 का कुल वजन | 1480.7 किग्रा |
PSLV की यह कौन सी उड़ान थी | 59वीं; XL के साथ 25वीं |
Aditya L1 सूर्य के किस कक्षा में स्थापित होगा | हैलो ऑर्बिट (Halo Orbit) |
Aditya L1 को हैलो ऑर्बिट में पहुँचने में कितना समय लगेगा | 4 महीने |
Aditya L1 में कितने पेलोड हैं | 7 पेलोड |
Aditya L1 Mission क्या है?
Aditya L1 Mission सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित भारतीय सौर मिशन है। इसरो ने इसे पहला अंतरिक्ष आधारित वेधशाला श्रेणी का भारतीय सौर मिशन कहा है। यानि आदित्य-एल 1 सूर्य का अध्ययन करने वाली अंतरिक्ष में पहली भारतीय वेधशाला होगी।
इस मिशन के अंतर्गत Aditya L1 सूर्य की हैलो ऑर्बिट (Halo Orbit) में रहते हुए विभिन्न सौर गतिविधियों का अध्ययन करेगा। Aditya L1 को हैलो ऑर्बिट के लाग्रेंज बिंदु 1(Lagrange Point 1) पर स्थापित किया जाएगा जहां से यह बिना किसी आच्छादन या ग्रहण के सूर्य की तरफ हमेशा नजर रख सकेगा।
Aditya L1 में लगे पेलोड ना केवल सूर्य पर नजर रखेंगे बल्कि L1 पॉइंट के आसपास का भी अध्ययन करेंगे।
इस मिशन का नाम Aditya L1 Mission क्यों रखा गया?
Aditya L1 Mission भारत का सूर्य मिशन है और सूर्य का एक नाम आदित्य भी होता है। यह सूर्य के हैलो ऑर्बिट के L1 Point यानि लाग्रेंज बिंदु 1(Lagrange Point 1) पर स्थापित किया जाएगा। इन दोनों नामों के आधार पर इस मिशन का नाम Aditya L1 Mission रखा गया है।
L1 Point (लैग्रेंज बिंदु) क्या है?
सूर्य-पृथ्वी प्रणाली में, पांच लैग्रेंज बिंदु हैं, जिन्हें L1, L2, L3, L4 और L5 के रूप में जाना जाता है। इनकी खोज सर्वप्रथम जोसेफ-लुई लैग्रेंज ने 1772 में की थी। जोसेफ-लुई लैग्रेंज एक इतालवी मूल के फ्रांसीसी गणितज्ञ, भौतिक विज्ञानी और खगोलशास्त्री थे।
लैग्रेंज बिंदु, जिन्हें लैग्रैन्जियन बिंदु (Lagrangian points) या लाइब्रेशन बिंदु (libration points) के नाम से भी जाना जाता है, अंतरिक्ष में ऐसे विशिष्ट स्थान हैं जहां दो बड़ी वस्तुओं, जैसे कि पृथ्वी और चंद्रमा या पृथ्वी और सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति संतुलित हो जाती है। इस संतुलन की वजह से इन लैग्रेंज बिंदुओं पर स्थापित वस्तु, जैसे उपग्रह या अंतरिक्ष यानों के लिए एक स्थिर कक्षा संभव हो पाती है। ये बिंदु अंतरिक्ष अन्वेषण और उपग्रह परियोजनाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं।
L1 बिंदु सूर्य और पृथ्वी के बीच स्थित है जो पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किलोमीटर यानि 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर है। लेकिन यह दूरी पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य की उनकी कक्षाओं में बदलती स्थिति के कारण समय के साथ बदलती रहती है। यह बिंदु सूर्य की ओर सूर्य और पृथ्वी बीच स्थित है जो पृथ्वी की छाया के ठीक बाहर स्थित है। जिससे कारण यह उन अंतरिक्ष यानों के लिए उपयुक्त है जो सूर्य का अध्ययन करना चाहते हैं।
सूर्य के अध्ययन के लिए L1 पॉइंट क्यों महत्वपूर्ण है?
जैसा कि ऊपर बताया गया है कि L1 बिन्दु पृथ्वी से दूर सूर्य की दिशा में स्थित है। यह बिंदु सूर्य की ओर की पृथ्वी की छाया के ठीक बाहर स्थित है। इसलिए इस बिन्दु पर रहते हुए Aditya L1 निर्बाध रूप से सूर्य की निगरानी कर सकता है।
इस बिन्दु का एक और लाभ यह है कि यहाँ स्थित Aditya L1, सौर विकिरण और चुंबकीय तूफानों को पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र और वायुमंडल से प्रभावित हुए बिना ही अध्ययन कर सकता है।
इस बिन्दु पर गुरुत्वाकर्षण स्थिरता के कारण Aditya L1 को संचालित करने के लिए कम रखरखाव करने की जरूरत पड़ेगी। इससे Aditya L1 के संचालन की लागत को भी कम किया जा सकता है।
होने से पहले सौर विकिरण और चुंबकीय तूफानों तक पहुंचने की भी अनुमति देता है। इसके अतिरिक्त, L1 बिंदु की गुरुत्वाकर्षण स्थिरता उपग्रह की परिचालन दक्षता को अनुकूलित करते हुए, लगातार कक्षीय रखरखाव प्रयासों की आवश्यकता को कम करती है।
Aditya L1 Mission की यात्रा और इसकी वर्तमान स्थिति
2 सितंबर, 2023 को अपने निर्धारित प्रक्षेपण के बाद, आदित्य-एल1 16 दिनों तक पृथ्वी की कक्षाओं में चक्कर लगाता रहेगा। जिसके दौरान यह अपनी यात्रा के लिए आवश्यक वेग हासिल करने के लिए 5 ऑर्बिट मैन्यूवर्स से गुजरेगा।
Aditya L1 को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करने के बाद अब इसकी कक्षा उत्थान जारी है और 3 सितंबर को पहला कक्ष उत्थान किया गया। इसे ISTRAC (ISRO Telemetry, Tracking and Command Network), बैंगलोर से निष्पादित किया गया।
दूसरा कक्ष उत्थान 5 सितंबर 2023 को किया गया। इस नई कक्षा का उपभू (Perigee) 282 किमी और अपभू (Apogee) 40225 किमी है।
पृथ्वी की पाँचवी कक्षा में चक्कर में लगाने के बाद आदित्य L1 पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर निकल जाएगा। इसे पृथ्वी SOI(Sphere of influence) निकास कहते हैं।
उसके बाद आदित्य L1 लैग्रेंज1 बिंदु के आसपास गंतव्य के लिए ट्रांस-लैरेंजियन 1 इंसर्शन (Trans-Lagrangian 1 Insertion – TLI) होगा और फिर अपने 110-दिवसीय प्रक्षेप पथ की शुरुआत कर देगा। यात्रा के इस चरण को क्रूज चरण नाम दिया गया है।
जब यह L1 बिंदु के आसपास पहुँच जाएगा तो एक और ऑर्बिट मैन्यूवर के द्वारा आदित्य-L1 को L1 के चारों ओर Halo Orbit में स्थापित कर दिया जाएगा, जो पृथ्वी और सूर्य के बीच एक संतुलित गुरुत्वाकर्षण स्थान है। यह आदित्य-L1 के अपने गंतव्य तक पहुँचने का अंतिम चरण होगा।
वहाँ स्थापित होने के बाद आदित्य-L1 अपना पूरा जीवन इसी कक्षा में बिताएगा और सूर्य से संबंधित जरूरी जानकारियाँ पृथ्वी तक पहुंचाएगा।
इस यात्रा को पूरा करने में आदित्य-L1 को लगभग 4 महीने का समय लगेगा।
एल1 बिन्दु पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है जो पृथ्वी और सूर्य के बीच की मात्र 1% दूरी है। पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी लगभग 15 करोड़ किमी है। यानि आदित्य एल-1 केवल 15 लाख किमी की दूरी तय करेगा।
PSLV-XL रॉकेट क्या है?
Aditya-L1 Mission को PSLV-XL रॉकेट द्वारा लॉन्च किया गया। यह रॉकेट भारत के अंतरिक्ष मिशन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हो चुका है।
यहाँ हम PSLV-XL रॉकेट के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ देने जा रहे हैं जो परीक्षा की दृष्टि से बहुत ही लाभदायक है।
PSLV-XL भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित और संचालित Polar Satellite Launch Vehicle (PSLV) रॉकेट का एक प्रकार है और PSLV का उन्नत संस्करण है जो अधिक शक्तिशाली है और अधिक भार को ले जाने में सक्षम है। PSLV के अन्य वर्ज़न हैं – PSLV-CA, PSLV-DL, PSLV-QL.
PSLV-XL में 12 टन प्रणोदक भार(propellant load) के साथ 6 स्ट्रैप-ऑन बूस्टर लगे हैं। इन्हें उड़ान भरने से ठीक पहले जमीन पर प्रज्वलित किया जाता है, और ये रॉकेट को जमीन से ऊपर उठने में मदद करने के लिए अतिरिक्त शक्ति प्रदान करते हैं।
PSLV-XL की कुल ऊंचाई 44.4 मीटर है और इसका व्यास (Diameter) 2.8 मीटर है। इसका कुल वजन 320 टन है।
PSLV-XL चार चरणों वाला प्रक्षेपण यान है। पहले और तीसरे चरण यानि PS1 और PS3 में ठोस प्रणोदक वाले इंजन लगे होते हैं तथा दूसरे और चौथे चरण यानि PS2 और PS4 में तरल प्रणोदक वाले इंजन लगे होते हैं।
PSLV-XL की सूर्य-तुल्यकालिक (Sun-synchronous) कक्षा में 1,800 किलोग्राम तक की पेलोड ले जाने की क्षमता है। इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के उपग्रहों को लॉन्च करने के लिए किया जा चुका है, जिनमें पृथ्वी अवलोकन उपग्रह, संचार उपग्रह और वैज्ञानिक उपग्रह शामिल हैं।
Aditya L1 के प्रक्षेपण सहित अब तक PSLV-XL का उपयोग 25 मिशनों पर किया जा चुका है। इसकी पहली उड़ान 22 अक्टूबर 2008 को हुई थी, जब इसने चंद्रयान-1 अंतरिक्ष यान को लॉन्च किया था। इसके अलावा PSLV-XL द्वारा मार्स ऑर्बिटर मिशन स्पेसक्राफ्ट (मंगलयान) को 5 नवंबर 2013 को प्रक्षेपित किया गया था।
Aditya L1 Mission के लिए PSLV-C57 की यह 59वीं उड़ान थी PSLV-XL वर्ज़न की 25वीं उड़ान थी। इसे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर के लॉन्च पैड 2 से प्रक्षेपित किया गया। इसने आदित्य L1 को पहले पृथ्वी की निचली कक्षा में छोड़ा जिसकी अपभू (Apogee) 19,500 किमी और उपभू (Perigee) 235 किमी थी।
अपभू (Apogee) किसी खगोलीय पिंड की कक्षा में वह बिंदु है जहां वह उस पिंड से सबसे दूर होता है जिसकी वह परिक्रमा कर रहा होता है। उदाहरण के तौर पर पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा की कक्षा के मामले में, अपभू वह बिंदु है जहां चंद्रमा पृथ्वी से सबसे दूर होता है। चंद्रमा की औसत अपभू दूरी लगभग 405,696 किलोमीटर (252,088 मील) है।
उपभू (Perigee) किसी खगोलीय पिंड की कक्षा में वह बिंदु है जहां वह उस पिंड के सबसे करीब होता है जिसकी वह परिक्रमा कर रहा होता है। उदाहरण के तौर पर पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा की कक्षा के मामले में, उपभू वह बिंदु है जहां चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। चंद्रमा की औसत उपभू दूरी लगभग 363,300 किलोमीटर (225,623 मील) है।
PSLV-XL के अब तक के प्रक्षेपण
क्र. सं. | PSLV रॉकेट | उड़ान तिथि | मिशन |
1 | PSLV-C11 | 22-Oct-08 | Chandrayaan-1 |
2 | PSLV-C17 | 15-Jul-11 | GSAT-12 |
3 | PSLV-C19 | 26-Apr-12 | RISAT-1 |
4 | PSLV-C22 | 01-Jul-13 | IRNSS-1A |
5 | PSLV-C25 | 05-Nov-13 | Mars Orbiter Mission Spacecraft |
6 | PSLV-C24 | 04-Apr-14 | IRNSS-1B |
7 | PSLV-C26 | 16-Oct-14 | IRNSS-1C |
8 | PSLV-C27 | 28-Mar-15 | IRNSS-1D |
9 | PSLV-C28 | 10-Jul-15 | DMC3 Mission |
10 | PSLV-C30 | 28-Sep-15 | Astrosat |
11 | PSLV-C31 | 20-Jan-16 | IRNSS-1E |
12 | PSLV-C32 | 10-Mar-16 | IRNSS-1F |
13 | PSLV-C33 | 28-Apr-16 | IRNSS-1G |
14 | PSLV-C34 | 22-Jun-16 | CARTOSAT-2 Series Satellite |
15 | PSLV-C36 | 07-Dec-16 | RESOURCESAT-2A |
16 | PSLV-C37 | 15-Feb-17 | Cartosat -2 Series Satellite |
17 | PSLV-C38 | 23-Jun-17 | Cartosat-2 Series Satellite |
18 | PSLV-C39 | 31-Aug-17 | IRNSS-1H |
19 | PSLV-C40 | 12-Jan-18 | Cartosat-2 Series Satellite |
20 | PSLV-C41 | 12-Apr-18 | IRNSS-1I |
21 | PSLV-C47 | 27-Nov-19 | Cartosat-3 |
22 | PSLV-C50 | 17-Dec-20 | CMS-01 |
23 | PSLV-C52 | 14-Feb-22 | EOS-04 Mission |
24 | PSLV-C54 | 26-Nov-22 | EOS-06 Mission |
25 | PSLV-C57 | 02-Sep-23 | Aditya-L1 |
Aditya L1 Mission: Payloads
सूर्य के क्रमबद्ध अध्ययन के लिए आदित्य L1 अपने साथ सात वैज्ञानिक पेलोड ले गया है। सभी पेलोड विभिन्न इसरो केंद्रों के सहयोग से स्वदेशी रूप से विकसित किए गए हैं।
ये सात पेलोड्स इस प्रकार हैं –
- VELC (Visible Emission Line Coronagraph): इसे सौर कोरोना और कोरोनल मॉस इजेक्शन की गतिशीलता का अध्ययन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इस पेलोड को भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (Indian Institute of Astrophysics), बेंगलुरु द्वारा विकसित किया गया है।
- SUIT (Solar Ultra-violet Imaging Telescope): इसे अल्ट्रा-वायलेट (UV) के निकट सौर फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर के इमेज लेने के लिए लगाया गया है और यह अल्ट्रा-वायलेट (UV) के निकट सौर विकिरण भिन्नता को मापेगा। इसे Inter University Centre for Astronomy & Astrophysics, Pune द्वारा विकसित किया गया है।
- SoLEXS और HEL10S: The Solar Low Energy X-ray Spectrometer (SoLEXS) और The High Energy L1 Orbiting X-ray Spectrometer (HEL1OS) को विस्तृत एक्स-रे ऊर्जा रेंज में सूर्य से आने वाली एक्स-रे चमक (X-ray flares ) का अध्ययन करने के लिए डिजाइन करने के लिए विकसित किया गया। इन दोनों पेलोड्स का विकास U R Rao Satellite Centre, Bengaluru में किया गया है।
- ASPEX और PAPA: Aditya Solar wind Particle EXperiment (ASPEX) और Plasma Analyser Package for Aditya (PAPA) को सौर पवन (solar wind) और ऊर्जावान आयनों (energetic ions) के अध्ययन के लिए डिजाइन किया गया है। साथ ही ये पेलोड्स उनके ऊर्जा वितरण का अध्ययन करेंगे। ASPEX को Physical Research Laboratory, Ahmedabad द्वारा और PAPA को Space Physics Laboratory, Vikram Sarabhai Space Centre, Thiruvananthapuram द्वारा विकसित किया गया है।
- Magnetometer: Aditya L1 में लगा मैग्नेटोमीटर पेलोड L1 बिंदु पर अंतरग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र (measuring interplanetary magnetic) को मापने में सक्षम है। इसे Laboratory for Electro Optics Systems, Bengaluru में विकसित किया गया है।
इन पेलोड्स के बारे में हम नीचे टेबल में संक्षिप्त में जानकारी दे रहे हैं।
क्र. सं. | पेलोड | क्षमता | लैब |
1 | Visible Emission Line Coronagraph(VELC) | Corona/Imaging & Spectroscopy | Indian Institute of Astrophysics, Bengaluru |
2 | Solar Ultraviolet Imaging Telescope (SUIT) | Photosphere and Chromosphere Imaging- Narrow & Broadband | Inter University Centre for Astronomy & Astrophysics, Pune |
3 | Solar Low Energy X-ray Spectrometer (SoLEXS) | Soft X-ray spectrometer: Sun-as-a-star observation | U R Rao Satellite Centre, Bengaluru |
4 | High Energy L1 Orbiting X-ray Spectrometer(HEL1OS) | Hard X-ray spectrometer: Sun-as-a-star observation | U R Rao Satellite Centre, Bengaluru |
5 | Aditya Solar wind Particle Experiment(ASPEX) | Solar wind/Particle Analyzer Protons & Heavier Ions with directions | Physical Research Laboratory, Ahmedabad |
6 | Plasma Analyser Package For Aditya (PAPA) | Solar wind/Particle Analyzer Electrons & Heavier Ions with directions | Space Physics Laboratory, Vikram Sarabhai Space Centre, Thiruvananthapuram |
7 | Advanced Tri-axial High Resolution Digital Magnetometers | In-situ magnetic field (Bx, By and Bz). | Laboratory for Electro Optics Systems, Bengaluru |
उपरोक्त सात पेलोड्स में से पहले चार यानि VELC, SUIT, SoLEXS, और HEL1OS पेलोड Remote Sensing Payloads हैं जिनकी केवल सूर्य की तरफ नजर रहेगी और ये सूर्य का अध्ययन करेंगे।
जबकि शेष तीन पेलोड्स यानि ASPEX, PAPA और Magnetometer पेलोड्स In-situ Payloads हैं जो L1 बिन्दु पर कणों और आसपास के क्षेत्रों का अध्ययन करेंगे।
Aditya L1 Mission के उद्देश्य
- सूर्य के ऊपरी वायुमंडल (क्रोमोस्फीयर और कोरोना) की गतिशीलता का अध्ययन करना।
- क्रोमोस्फेरिक और कोरोनल हीटिंग का अध्ययन, आंशिक रूप से आयनित प्लाज्मा का भौतिक अध्ययन, कोरोनल द्रव्यमान इजेक्शन की शुरुआत का अध्ययन, और फ्लेयर्स का अध्ययन करना।
- सूर्य से कण गतिशीलता के अध्ययन के लिए डेटा प्रदान करने वाले इन-सीटू कण और प्लाज्मा वातावरण का निरीक्षण करना।
- सौर कोरोना (solar corona) और इसके तापन तंत्र (heating mechanism ) का भौतिक अध्ययन करना।
- कोरोनल और कोरोनल लूप प्लाज्मा का निदान करना और इसमें तापमान, वेग और घनत्व का अध्ययन करना।
- Coronal Mass Ejections (CMEs) के विकास, गतिशीलता और उत्पत्ति का अध्ययन करना।
- कई परतों (क्रोमोस्फीयर, बेस और विस्तारित कोरोना) पर होने वाली प्रक्रियाओं (processes) के अनुक्रम (sequence) की पहचान करना जिनकी वजह से अंततः सौर विस्फोट की घटनाओं होती हैं।
- सौर कोरोना में चुंबकीय क्षेत्र टोपोलॉजी (Magnetic field topology) और चुंबकीय क्षेत्र माप (magnetic field measurements ) का अध्ययन करना।
सूर्य का अध्ययन क्यों जरूरी है?
सूर्य का अध्ययन हमारे लिए क्यों जरूरी है, इस प्रश्न के उत्तर से पहले सूर्य के बारे में संक्षिप्त जानकारी होना जरूरी है।
सूर्य हमारे सौरमंडल का सबसे निकटतम तारा और सबसे बड़ा पिंड है। सूर्य की अनुमानित आयु लगभग 4.5 अरब वर्ष है। यह हाइड्रोजन और हीलियम गैसों का एक प्रकाशित पिंड है। पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 150 मिलियन किलोमीटर (15 करोड़ किमी) है, और यह हमारे सौर मंडल के लिए ऊर्जा का स्रोत है।
सौर ऊर्जा के बिना पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व नहीं हो सकता है। सूर्य का गुरुत्वाकर्षण सौर मंडल की सभी वस्तुओं को एक साथ बांधे रखता है। सूर्य के मध्य क्षेत्र, जिसे ‘कोर’ के नाम से जाना जाता है, में तापमान 15 मिलियन ( 1.5 करोड़) डिग्री सेल्सियस तक होता है।
सूर्य के कोर में परमाणु संलयन नामक एक प्रक्रिया होती है जो सूर्य को शक्ति प्रदान करती है। सूर्य की दृश्य सतह, जिसे प्रकाशमंडल के नाम से जाना जाता है, अपेक्षाकृत ठंडी है और इसका तापमान लगभग 5,500°C है।
सूर्य से लगातार निकालने वाली विकिरण, कणों के निरंतर प्रवाह और अपने चुंबकीय क्षेत्र से पृथ्वी को प्रभावित करता है। सूर्य से कणों के निरंतर प्रवाह को “सौर पवन” के नाम से जाना जाता है और ये अधिकतर उच्च ऊर्जा वाले प्रोटॉन से बने होते हैं। ये सौर पवन और सौर चुंबकीय क्षेत्र, सौर मंडल में चारों तरफ फैले हुए हैं।
इन सौर पवनों के साथ-साथ अन्य सौर घटनाएं जैसे Coronal Mass Ejection (CME) जैसी विस्फोटक सौर घटनाएं अंतरिक्ष की प्रकृति को प्रभावित करती है। ऐसी घटनाओं के दौरान, ग्रह के निकट चुंबकीय क्षेत्र और आवेश कण वातावरण की प्रकृति बदल जाती है।
Coronal Mass Ejection (CME) के द्वारा उत्पन्न क्षेत्र का जब पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के साथ परस्पर क्रिया होती है तो यह पृथ्वी के निकट एक चुंबकीय गड़बड़ी पैदा कर सकती है। इन घटनाओं की वजह से अंतरिक्ष में स्थित यान, satellite आदि को भी प्रभावित कर सकती हैं।
यह रही सूर्य के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी। अब जानते हैं कि सूर्य का अध्ययन क्यों जरूरी है।
सूर्य पृथ्वी का सबसे निकटतम तारा है और इसलिए इसका अध्ययन अन्य तारों की तुलना में अधिक विस्तार से किया जा सकता है। सूर्य का अध्ययन करके हम अपनी आकाशगंगा के तारों के साथ-साथ अन्य आकाशगंगाओं के तारों के बारे में भी बहुत कुछ जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
सूर्य एक अत्यंत ही गतिशील तारा है और यह बहुत ही विस्तृत है। सूर्य में कई प्रकार की विस्फोटक घटनाएं होती रहती है जिनकी वजह से यह सौर मंडल में भारी मात्रा में ऊर्जा छोड़ता है।
यदि सूर्य में होने वाली ये विस्फोटक घटनाएं पृथ्वी की ओर निर्देशित हो जाती हैं तो यह पृथ्वी के निकट अंतरिक्ष वातावरण में विभिन्न प्रकार की गड़बड़ी पैदा कर सकती है। जैसे कि विभिन्न अंतरिक्ष यान और संचार प्रणालियों में कई प्रकार की समस्याएं हो सकती हैं।
इनके अलावा, यदि कोई अंतरिक्ष यात्री सूर्य में होने वाली ऐसी विस्फोटक घटनाओं के सीधे संपर्क में आता है, तो वह खतरे में पड़ जाएगा।
लेकिन, यदि इन घटनाओं के बारे में पहले से ही जानकारी मिल जाती है तो हम बड़ी गड़बड़ी होने से बचा सकते हैं। हम पहले से ही कुछ सुधारात्मक उपाय कर सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि हमें इनकी प्रारंभिक चेतावनी मिल सके।
इसलिए सूर्य में होने वाली घटनाओं को समझने के लिए सूर्य का अध्ययन बहुत जरूरी है। Aditya L1 इन्हीं उद्देश्यों को पूरा करने के लिए प्रक्षेपित किया गया है और उम्मीद है कि यह सूर्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारियाँ उपलब्ध कराएगा।
ISRO के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी
ISRO Full Form – Indian Space Research Organisation
ISRO (Indian Space Research Organisation) भारत की स्पेस रिसर्च एजेंसी है जिसकी स्थापना 15 अगस्त, 1969 को हुई थी। इसरो का मुख्यालय बेंगलुरु, कर्नाटक में स्थित है।
इसके पहले देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1962 में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (Indian National Committee for Space Research – INCOSPAR) की स्थापना की और 1963 में थुंबा से भारत ने अपना पहला साउंडिंग रॉकेट प्रक्षेपित किया। इस प्रक्षेपण के साथ भारत औपचारिक रूप से अंतरिक्ष रिसर्च में शामिल हो गया।
15 अगस्त 1969 में INCOSPAR का पुनर्गठन किया गया और डॉक्टर विक्रम साराभाई दिशा निर्देश में इसका नाम बदलकर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) कर दिया गया। वर्तमान में ISRO दुनिया की 6 सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक है।
1975 में भारत के पहले स्वदेशी रूप से विकसित उपग्रह आर्यभट्ट को सोवियत प्रक्षेपण यान का उपयोग करके प्रक्षेपित किया गया। इस तरह इसरो ने एक महत्वपूर्ण कदम आगे बढ़ाया और उपग्रह प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष अनुसंधान की दुनिया में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
इसरो ने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं, जिनमें शामिल हैं:
- 1975 में प्रथम उपग्रह, आर्यभट्ट का प्रक्षेपण।
- 1980 में प्रथम मानवरहित अंतरिक्ष यान, रोहिणी का प्रक्षेपण।
- 1994 में प्रथम संचार उपग्रह, इनसैट-1 का प्रक्षेपण।
- 2008 में प्रथम चंद्रयान, चंद्रयान-1 का प्रक्षेपण।
- 2014 में प्रथम मंगलयान, मंगलयान का प्रक्षेपण।
- 2024 में चंद्रमा पर मानव रहित लैंडर की सफल लैंडिंग
- 2024 में सौर मिशन आदित्य L1 का सफल प्रक्षेपण
इसरो के बारे में संक्षिप्त जानकारी
पूरा नाम | भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन |
स्थापना | 15 अगस्त, 1969 |
मुख्यालय | बेंगलुरु, कर्नाटक |
आदर्श वाक्य | “मानव कल्याण के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी” |
पहला उपग्रह | आर्यभट्ट (1975) |
पहला चंद्र मिशन | चंद्रयान-1 (2008) |
पहला मंगल मिशन | मंगलयान (2014) |
सबसे शक्तिशाली प्रक्षेपण यान | भारी उपग्रह प्रक्षेपण यान (GSLV) |
सबसे महत्वाकांक्षी कार्यक्रम | मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम (Gaganyaan) |
वर्तमान अध्यक्ष | डॉ. एस सोमनाथ |
Aditya L1 Mission FAQs
Aditya L1 Mission क्या है?
आदित्य L1 मिशन भारत का पहला सूर्य मिशन, जो सूर्य के कोरोना, सौर विकिरण, सौर ज्वालाओं और कोरोनाल मास इन्जेक्शन का अध्ययन करेगा।
Aditya L1 का प्रक्षेपण कब और कहाँ से किया गया?
Aditya L1 का प्रक्षेपण 2 सितंबर 2023 श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से किया गया।
Aditya L1 को सूर्य के किस ऑर्बिट में स्थापित किया जाएगा?
Aditya L1 को सूर्य के हैलो ऑर्बिट (Halo Orbit) में किया जाएगा।
हैलो ऑर्बिट में L1 बिन्दु क्या है?
लैग्रेंज बिंदु या लैग्रैन्जियन बिंदु (Lagrangian points) या लाइब्रेशन बिंदु (libration points), अंतरिक्ष में ऐसे विशिष्ट स्थान हैं जहां दो बड़ी वस्तुओं की गुरुत्वाकर्षण शक्ति संतुलित हो जाती है।
सूर्य-पृथ्वी प्रणाली में कितने लैग्रेंज बिंदु हैं?
सूर्य-पृथ्वी प्रणाली में, पांच लैग्रेंज बिंदु हैं, जिन्हें L1, L2, L3, L4 और L5 के रूप में जाना जाता है।
लैग्रेंज बिंदुओं की खोज किसने की थी?
लैग्रेंज बिंदुओं की खोज सर्वप्रथम जोसेफ-लुई लैग्रेंज ने 1772 में की थी। जोसेफ-लुई लैग्रेंज एक इतालवी मूल के फ्रांसीसी गणितज्ञ, भौतिक विज्ञानी और खगोलशास्त्री थे।
Aditya L1 Mission : परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण MCQs
प्रश्न: उस कक्षा का नाम क्या है जिसमें आदित्य एल1 अंतरिक्ष यान को स्थापित करने की योजना है?
(a) Geostationary orbit
(b) Polar orbit
(c) Halo orbit
(d) Elliptical orbit
उत्तर: (c) Halo orbit
प्रश्न: सूर्य-पृथ्वी प्रणाली में उस बिंदु का क्या नाम है जहां आदित्य एल1 अंतरिक्ष यान होगा?
A) L1 point
B) L2 point
C) L3 point
D) L4 point
उत्तर: A) L1 point
प्रश्न: आदित्य L1 अंतरिक्ष यान में कितने वैज्ञानिक पेलोड लगे हैं?
(a) चार
(b) पाँच
(c) छः
(d) सात
उत्तर: (d) सात
प्रश्न: आदित्य L1 मिशन कब लॉन्च किया गया?
a) 1 सितंबर, 2023
b) 2 सितंबर, 2023
c) 3 सितंबर, 2023
d) 4 सितंबर, 2023
उत्तर: b) 2 सितंबर, 2023
प्रश्न: आदित्य L1 मिशन को सूर्य से कितनी दूरी पर प्रक्षेपित किया गया था?
a) 1.5 मिलियन किलोमीटर
b) 2.5 मिलियन किलोमीटर
c) 3.5 मिलियन किलोमीटर
d) 4.5 मिलियन किलोमीटर
उत्तर: a) 1.5 मिलियन किलोमीटर
प्रश्न: आदित्य L1 कहाँ से लॉन्च किया गया?
a) सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा, भारत
b) विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरुवनंतपुरम, भारत
c) अंतरिक्ष उपयोग केंद्र, अहमदाबाद, भारत
d) नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर, हैदराबाद, भारत
उत्तर: a) सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा, भारत
प्रश्न: आदित्य L1 को किस रॉकेट से छोड़ा गया?
a) PSLV-C57
b) PSLV-C54
c) PSLV-C52
d) PSLV-C56
उत्तर: a) PSLV-C57
प्रश्न: PSLV की यह कौन सी उड़ान थी?
a) 57वीं
b) 58वीं
c) 59वीं
d) 56वीं
उत्तर: c) 59वीं
प्रश्न: PSLV-XL की यह कौन सी उड़ान थी?
a) 23वीं
b) 24वीं
c) 25वीं
d) 26वीं
उत्तर: c) 25वीं
प्रश्न: Aditya L1 Mission की लागत क्या थी?
a) लगभग 400 करोड़ रुपये
b) लगभग 600 करोड़ रुपये
c) लगभग 800 करोड़ रुपये
d) लगभग 900 करोड़ रुपये
उत्तर: a) लगभग 400 करोड़ रुपये
प्रश्न: लैग्रेंज प्वाइंट की खोज किसने की?
a) आइजैक न्यूटन
b) पियरे-साइमन लाप्लास
c) जोसेफ-लुई लैग्रेंज
d) जोहान्स केपलर
उत्तर: c) जोसेफ-लुई लैग्रेंज
प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा आदित्य एल1 मिशन पर सूर्य विश्लेषण के लिए उपयोग किया जाने वाला पेलोड नहीं है?
A) Visible Emission Line Coronagraph (VELC)
B) Solar Ultraviolet Imaging Telescope (SUIT)
C) Solar Wind Particle Experiment (SWEP)
D) X-ray Solar Monitor (XSM)
उत्तर: D) X-ray Solar Monitor (XSM)
प्रश्न: सूर्य-पृथ्वी प्रणाली में कितने लैग्रेंज बिंदु हैं?
a) 3
b) 4
c) 5
d) 6
उत्तर: 5
प्रश्न: सूर्य और पृथ्वी के बीच कितनी दूरी है?
a) 12 करोड़ किमी
b) 13 करोड़ किमी
c) 14 करोड़ किमी
d) 15 करोड़ किमी
उत्तर: d) 15 करोड़ किमी
प्रश्न: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की स्थापना कब हुई थी?
a) 15 अगस्त, 1969
b) 15 अगस्त, 1970
c) 15 अगस्त, 1971
d) 15 अगस्त, 1972
उत्तर: a) 15 अगस्त, 1969
प्रश्न: इसरो का मुख्यालय कहाँ स्थित है?
a) नई दिल्ली
b) बेंगलुरु
c) हैदराबाद
d) चेन्नई
उत्तर: b) बेंगलुरु
प्रश्न: भारत का पहला उपग्रह कौन सा था?
a) आर्यभट्ट
b) रोहिणी
c) भास्कर
d) विक्रम
उत्तर: a) आर्यभट्ट
प्रश्न: इसरो का संस्थापक किसे माना जाता है?
a) डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
b) डॉ. होमी जे. भाभा
c) डॉ. विक्रम साराभाई
d) डॉ. सतीश धवन
उत्तर: c) डॉ. विक्रम साराभाई
प्रश्न: इसरो का पहला सफल उपग्रह प्रक्षेपण यान कौन सा था?
a) PSLV
b) GSLV
c) SLV
d) ASLV
उत्तर: c) SLV (Satellite Launch Vehicle)
महत्वपूर्ण टैग्स – Aditya L1 Mission, Halo Orbit, L1 Point, Lagrange Point 1, PSLV-XL रॉकेट, आदित्य L1, लैग्रेंज बिंदु