कैसे मिला तिरंगे को वर्तमान स्वरूप। जानें हमारे तिरंगे की विकास यात्रा।
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1905 में विवेकानंद की शिष्या सिस्टर निवेदिता ने निवेदिता कन्या विद्यालय की छात्राओं की मदद से एक राष्ट्रीय ध्वज तैयार किया।
जिसपर बंगाली भाषा में लिखा था वंदे मातरम
7 अगस्त 1906 को कोलकाता के ग्रीन पार्क में एक अन्य राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया। इसमें केसरिया, पीले और हरे संग की तीन पट्टियां बनीं थी। पीले रंग की पट्टी के बीच में वंदेमातरम् लिखा था।
मैडम भीकाजी कामा ने अगस्त 1907 में जर्मनी के स्टुटगार्ट में सोशलिस्ट कांग्रेस के अधिवेशन में भारतीय ध्वज फहराया, जो विदेशी भूमि पर फहराया जाने वाला पहला भारतीय ध्वज था।
1917 में होमरूल आंदोलन के दौरान एक नया झंडा अपनाया गया। इसमें 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज धारियां थीं और सप्तर्षि विन्यास में सात तारे थे। एक सफेद अर्धचंद्र और तारा शीर्ष के कोने पर स्थित था।
1921 में पिंगली वेंकय्या ने लाल और हरे रंग की पृष्ठभूमि पर चरखे के साथ एक ध्वज डिजाइन किया। बाद में इसमें सफेद रंग जोड़ा गया।
1931 में कराची में हुए कांग्रेस अधिवेशन में पिंगली वेंकय्या द्वारा तैयार किए तीन रंगों के ध्वज को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया
22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इस तीन रंग के झंडे को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। लेकिन ध्वज में बने चरखे का स्थान अशोक स्तम्भ पर बने धर्म चक्र ने ले लिया।
इस तरह हमें हमारे राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का वर्तमान स्वरूप मिला। इसमें उपस्थित रंगों की व्याख्या 1931 के काँग्रेस अधिवेशन में की गई थी।
हमारे राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के लंबाई और चौड़ाई का अनुपात 3:2 होता है। इसमें बने अशोक चक्र में 24 तीलियाँ होती है।